उत्तर भारत में हर साल बाढ़ आती है। कोई नहीं बुलाता है फिर भी आती है। ठीक गर्मी की छुट्टियों में पड़ोस वाली आंटी जैसे। आती है और पूरा घर तहस नहस कर जाती है। सबको पता होता है आने वाली है, पर कोई कुछ कर नहीं सकता। अजीब सी मजबूरी है। बाढ़ अब एक घर का सदस्य बन चुकी है। पहले एक हफ़्ते ये शोर मचता है की मीडिया कवर नहीं कर रही, फिर जैसे तैसे मीडिया कवर करती है तो लोग डोनेशन के लिंक बनाने शुरू कर देते है और जब उससे भी बोरियत महसूस होने लग जाए, तो अनुपम मिश्र का वो लेख फिर से इंटर्नेट पे बाढ़ की तरह ही फैलने लगता है। एक ही लेख लिखा गया है इस आपदा पे, तो ज़ाहिर सी बात है, वही छापेंगे। नया थोड़ी लिखेंगे। वो भी बेचारे चले गये। बस ये बाढ़ वही कि वही है।
यही पैटर्न हर साल बेरहमी से दोहराया जाता है। सरकार को डर लगता है की कहीं काम कर दिया तो लोग वोट देना ना बंद कर दें। क्यूँकि वोट तो काम ना करने वालों को ही मिलते है। और इसीलिए शायद कोई काम नहीं करता। सब सोचते है पहले उन्हें करने दो, फिर हम करेंगे। काम करने में पहल कैसी। इतनी भी क्या जल्दी है। और जब कोई काम कर ही नहीं रहा है तो लोग भी वोट उसे ही देंगे जो उनके धर्म की बात करे। अब इसमें नेता लोग क्या करें। बिना काम के जीत रहें है तो फिर काहे का लोड ले कोई। बड़ी विडम्बना है उनके लिए भी। चाह कर भी काम नहीं कर पा रहे बेचारे, हमारी वजह से। इस साल फिर से बाढ़ आयी है। कुल्लू में। अब बाढ़ आपदा नहीं, महज़ एक खबर बनकर रह गयी है। लोग एक बाढ़ की तुलना दूसरी बाढ़ से करने लगे है। मानो उनके बच्चे हो। दो साल पहले की बिहार वाली जितनी बड़ी नहीं है, इस बार वाली। नहीं, शुक्ला जी? कहीं तो टॉप करे हमारा प्रदेश। फ़क्र है।
वैसे हम कर भी क्या सकते है? कुदरत का खेल है सब। हमने थोड़ी ही कोई बाढ़ जैसी स्तिथि पैदा कि है। ज़मीन पे क़ब्ज़ा नहीं करेंगे तो रहेंगे कहाँ? पेड़ नहीं काटेंगे तो मेट्रो कहाँ बनायेंगे? मेट्रो बहुत ज़रूरी है। दो चार साल मेट्रो में जायें फिर अपनी गाड़ी हो जाएगी तो बढ़िया तेल जलायेंगे। अपनी सहूलियत के लिए पूरा वन तो काट ही सकते है। बाक़ी एसी गीज़र तो नहीं छूटेगा अब। ये वाली बात बिना कटाक्ष के ही बोल रहा हूँ। मैं तो नहीं रह सकता। पेड़ लगा सकता हूँ, पर आलस आता है। सॉरी नेचर।
ग्लोबल वार्मिंग कुछ नहीं होता। आराम से एसी चला के खबरें देखी जाए टीवी पर। वाह क्या इंसानियत दिख रही है इस विडीओ में, एक लड़का नाव में बैठ कर कुत्ते को बचाने निकला है। इंसानियत ज़िंदा है अभी भी। वाह। अगले चैनल पे क्या है, ज़रा चेंज तो करो। एशेज़ देख लेते है। ये शायद अगले साल ना आये। बाढ़ तो आती जाती रहती है।
Felt like I was reading a hindi story from school days !
12th ke baad itni badhiya hindi aaj padhi!